Saturday, June 24, 2017

कुछ शायरी

॥कुछ शायरीयां॥

 अपनों को अवकाश मिले हर बक्त रवानी बनी रहे,
बडे पेडों का छाँव रहे सदावहार जवानी बनी रहे।
मै ययावर हूँ यारों वसुधैव कुटुम्बकं मेरा 'जीवन'
यही पन्थ रहे मेरा, मै जहाँ रहूँ एक निशानी बनी रहे ।
😃

अफवाहों का हि सारा जहाँ हैं
छोड कर भी तो जना हि काहाँ है
अधुरी है ख्वाहिसें तेरे  जीवन
उन्हें आधे मे छोडुँ यह भी तो गुनाह है
.
यूँ तो यादों की वारीश में भी सावन हि है
अपनों का यहाँ से दूर दरे यादों की है।
तौहीन ना हों यारों आप दिल में हो 'जीवन'
दरिया नीरों  का पार भी पाया तैरकी सी है।
.
कि रुसवाइओं कि क्या? खफा क्यों?
चेहरे के सियाहीयां ही हो दफ़ा क्यों?
होने दो ख़फा उन नासझोंको 'जीवन'
कोई दिमाग में रखता है, वेवफ़ा क्यों?
.
वो तेरी ख्वाहिशें कितनों के साथ चलेगी
क्यों दगा देते हो? सारें  जाहाँ बात चलेगी।


Thursday, June 22, 2017

शायरी

कि सफ़र यहीं किया उसे प्यार था
हुस्ने गुमान फ़रेवि थी ताज़ था
रहा बनता क्यूँ पागाल जीवन
वो ज़वाँ ही न तू ब़ज्मे ईकरार था

Wednesday, June 21, 2017

घुली मिली मुक्तकें।

घुलि मिली मुक्तकें।

१. 
यह मरघट जैसे बडे नगर निरीह मै
स्याह सन्नाटा भरे बाजार अकेला है
खोता रहूँ अकेले यूँ ही क्या आ'जीवन'
चल अब कहीं एकान्त नितान्त है।

२. 
क्या शबाओं का कोई अाखेटक नहि यहाँ
बता की कोई शर्वरी क्यूँ अप्रीया भारी जहाॅ।
प्रिय प्रेमोद्गारों में प्रस्फुटित नवाङ्कुर 'जीवन'
प्रेमी हृदयको विदिर्ण शब्दबाण भारी जहाँ॥

३.
बोलते  भी तुम नहि चुप क्यों हो
फिजुल बातें बना युं गुम क्यों हो
कोई मर्म न छुपा मेरा 'जीवन'
बेबसी  में तुम उचाटते  क्यों हो।।

४.
समन्दर जो जड, छुए कैसे ममत्वका आँचल यूँ ही
मञ्जरी तुलसी का भँवर श्रीराम, अगम्य ना क्यूँ ही,
आकाश से ऊँचे उन कन्धों का माप कैसे हो 'जीवन'
यानों में हम उडे, ऊन कन्धों में स्वातान्त्र्य रहें ज्यूँ ही।

५.
वो पहाड  वो झरनों में भी क्या?
वो ऊदास  तो अपने में भी क्या
कहो ना जीवन प्यार ही नही
गुलसनें हों छठा ख्वाबें भी क्या?




Friday, June 16, 2017

मुक्तकें

            ॥मुक्तकें॥

१.
वो पहाड  वो झरने में भी क्या
वो ऊदास  तो अपने में भी क्या
कहो ना जीवन प्यार ही नही
गुलसनें हों छठा ख्वाबें भी क्या?
.

बोरीयत कि  कई हद होती है
खासियतॊं की भी युँ कद होती है।
यारा तू तो फासानों की जीवन हो
कभी प्यारी  लब्ज भी ख़त होती है
.
३.
बसा हि लिया दील में तो,घर जाऊँ भी कैसे?
हों दिल में, सुन बात, रहूँ विन ठहरे ही कैसे?
होंगी बिती शामें, नजारें ठाहराया? भी 'जीवन'
अफ़सानों से हम गुजरें हैं और रुकें भी कैसे ?
.
४.
जाने दिल भी क्यों? फट गया
युं हि बातों मे दिल बट गया।
तुम्हे क्या कहूँ तन्हा हूँ 'जीवन'
कहो ना क्यों? मन यूँ ही हट गया।

Tuesday, June 6, 2017

शायरी


मै,
कि मेरी रुखसत चले तो कैसे?
जलिम दील दिया जले तो कैसे?
लूट  गए सरे बाजार गमजदाँ हैं
तो प्यार है भी फरेबि गले तो कैसे?
😃
Ashwini
छू ले आसमान जमीन की तलाश ना कर I
जी ले जिन्दगी खुशी की तलाश ना कर I
तकदीर बदल जायेगी खुद ही मेरे दोस्त ..
मुस्कराना सीख ले वजह की तलाश ना कर II
मै,


आशमाँ  इतनी भी, पास नही जमीं का,
एे! जिन्दगी क्या है ?तू, विन लत खुशी का।
क्या खाक वदलेगा, मुर्दे का भी जीवन,
गर मुस्कुराना क्या, फिक्र ? फिर  कमी का।