Sunday, February 25, 2018

हाईकु

॥हाईकु॥


बसन्त भी न
यहाँ बलात्कृत है
ग्रिष्म के द्वारा।

अपना नही
प्रेमालोकित है
अाडम्बर ही।

आमन चैन
दिलवर के संग
लुटा आए न?

घटाटोप में
जीवन का सुख भी
चतुर्गुणा है।

प्रेमी जन भी
प्रदर्शन के साथ
भुखा संसार।
     ©विष्णु शर्मा (भिक्षु जीवन)




Saturday, February 3, 2018

गज़ल

                            गज़ल

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जव भी मै रोना चाहता हूँ,
अकेले में होना चाहाता हूँ।
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शब्दों से भी खेलुँ कभी कुछ,
उन को नहि खोना चाहता हूँ।
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ऐ रस्मों रिवाज़ ऐ जिन्दगी,
खफा ही मै रहना चाहता हूँ।
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अब तो थक भी चूका हूँ मै,
यूँ ही रोना धोना चाहाता हूँ।
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आए दृष्टि में  प्रेम् तेरा कभी,
केश् तले मै सोना चाहता हूँ।
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अब और न तोड ऐ 'जीवन'
दिल् में सिर्फ़ कोना चाहाता हूँ।

©विष्णु शर्मा (भिक्षु जीवन)